कप्तानी में बल्लेबाजों की धाक, गेंदबाज अंतिम 11 तक सीमित

क्रिकेट के इतिहास में देखा गया है कि कप्तानी में बल्लेबाजों का हमेशा ही दबदबा रहा है। जबकि गेंदबाजों को कई वजहों के कारण टीम के नेतृत्व में तरजीह नहीं दी गई है।

पिछले दिनों भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली ने टी-20 फॉर्मेट की कप्तानी छोड़ने का फैसला किया। जिसके बाद उम्मीद के मुताबिक टीम के दूसरे सबसे सीनियर खिलाड़ी रोहित शर्मा को उनकी जगह टीम की कप्तानी सौंप दी गई। क्रिकेट के खेल में कुछ अपवादों को छोड़कर हमेशा यही परंपरा रही है कि टीम के दूसरे सबसे सीनियर या सबसे बेहतरीन युवा बल्लेबाज को ही टीम की कमान सौंपी जाती है। जबकि कई अनुभवी और प्रतिभाशाली गेंदबाजों को भी अपने से कम अनुभवहीन खिलाड़ियों के नेतृत्व में खेलना पड़ता है। भारत सहित दुनिया की सभी टीम प्रबंधन हमेशा से ही गेंदबाजों को कप्तानी देने से परहेज करती रही हैं। तो आखिर क्या कारण हैं कि टीम प्रबंधन गेंदबाजों को कप्तानी देने से बचता है। क्या गेंदबाज कम प्रतिभाशाली होते हैं? क्या एक गेंदबाज कप्तान टीम को एकजुट रखने में असफल रहता है या फिर वह बल्लेबाज के लिए नाजीर नहीं बन पाता है? इन सब प्रश्नों के उत्तर में अक्सर गेंदबाजों की इंजरी, गेंदबाजी के समय उनकी शारीरिक थकावट और निरंतर अभ्यास आदि मुख्य कारण माने जाते हैं। कई लोग इन तर्कों के जवाब में कपिल देव, वसीम अकरम, कोर्टनी वॉल्श, डेनियल विट्टोरी तथा हालिया पूर्व कप्तानों बांग्लादेश के मशर्रफ मुर्तजा और वेस्टइंडीज के जेसन होल्डर जैसे पूर्व दिग्गज कप्तानों का उदाहरण देते हैं। हालांकि खेल विशेषज्ञ इसके कई कारण मानते हैं।

क्रिकेट के इतिहास को याद करते हुए वे बताते हैं कि 16 वीं शताब्दी में अपने शुरुआत के दिनों में क्रिकेट अमीर-गरीब वर्ग के खेल में बंटा था। बल्ला खरीदने या बनवाने की क्षमता सिर्फ अमीर वर्ग के पास ही होती थी। जिससे खेलते समय वही बल्लेबाजी और गेंदबाजी का क्रम तय करते थे। अघोषित रूप में वही टीम के कप्तान होते थे। और वे पहले बल्लेबाजी करते और गेंदबाजी पहले गरीबों से करवाते थे। 1877 ईo में जब क्रिकेट आधिकारिक तौर पर शुरू हुआ तो कप्तानी में लगभग वही नियम अपनाया गया। जो कई सुधारों के साथ दूसरे रूप में हमारे सामने है।

इसके अलावा गेंदबाजों का करियर बल्लेबाजों की तुलना में छोटा ही होता है। एक गेंदबाज के सन्यास लेने की औसत उम्र 33-34 साल तो वहीं बल्लेबाज की 37-38 साल होती है। खेल के दौरान भी एक गेंदबाज कप्तान को गेंदबाजी और कप्तानी का संतुलन बनाने में कई बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ओवर करते समय उसका ध्यान फील्डिंग सजाने से ज्यादा गेंद फेंकने पर होता है। और एक ओवर के बाद उसे कुछ आराम की भी जरूरत होती है, जिससे वह बाउंड्री पर खड़ा हो जाता है। इस बीच नए गेंदबाज को अपने आस-पास कप्तान की जरूरत होती है। जिससे फील्डिंग सेट करने में उसे परेशानी ना हो। ऐसी स्थिति में उस गेंदबाज और कप्तान में सही तालमेल नहीं बन पाता है। इसी बीच अगर मैच अंतिम ओवर में चला गया तो ना चाहते हुये वह ओवर कप्तान को ही करना पड़ेगा। ऐसी स्थिति में वह कई गलतियां कर सकता है। इसके अलावा गेंदबाजों की चोट भी एक मुख्य समस्या होती है, क्योंकि वे बल्लेबाजों की तुलना में ज्यादा चोटिल होते हैं। ऐसे में बार बार कप्तान बदलने पर टीम के प्रदर्शन पर खराब प्रभाव पड़ता है।

हालांकि क्रिकेट इतिहास में कई महान गेंदबाज कप्तान भी रहे हैं। जिनमें कपिल देव, बिशन सिंह वेदी, शॉन पोलक, इमरान खान, वसीम अकरम, कोर्टनी वॉल्श, डेनियल विट्टोरी, अनिल कुंबले आदि शामिल हैं। लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि ये सभी मध्यम तेज या स्पिनर गेंदबाज ही हैं। जिनके चोटिल होने का खतरा कम होता है और इन्होंने कप्तानी 1 या 2 फॉर्मेट में ही की है। आज के क्रिकेट की तरह 3-3 फॉर्मेट में नहीं। साथ ही साथ आज के दौर की उच्च तकनीक के माध्यम से स्थितियाँ धीरे-धीरे कुछ बेहतर हो रही हैं। और गेंदबाजों के चोटिल होने की दर भी कम हो रही है। स्थितियों में सुधार इसी तरह जारी रहा तो हमें भविष्य में कई अच्छे गेंदबाज कप्तान भी देखने को मिल सकते हैं।

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