"मेरे अस्पताल में 110 मरीज भर्ती हैं. वे सब यहाँ मेरे भरोसे पर आए थे लेकिन अब वे मर रहे हैं क्योंकि हमारे पास उनकी जान बचाने के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं है". आंसू पोंछते हुए अपना दर्द बयान करते ये सूरत के एक डॉक्टर की कहानी है. कुछ ऐसी ही कहानी भारत में कोरोना की भयावह दूसरी लहर के दौरान लगभग हर दूसरे-तीसरे अस्पताल की थी. कहीं बेड नहीं तो कहीं ऑक्सीजन.
देश के हर राज्य हर जिले की कहानी बिल्कुल समान थी बस किरदार अलग हो जाते थे. देश में कोरोना की दूसरी लहर में मरने वालों का आधिकारिक आँकड़ा 5 लाख से अधिक है लेकिन कई मीडिया रिपोर्ट्स में यह आंकड़ा 30-40 लाख तक बताया गया है. देश में सरकार तो जैसे लोगों के बीच से नदारद थी. लोग अपने स्तर पर अपनों का जीवन बचाने में जुटे थे.
कोरोना की पहली लहर में सरकार की तैयारियों की तारीफ यूएन सहित दुनिया के बड़े-बड़े देशों ने की थी. 20 जनवरी 2020 को केरल में कोरोना का पहला मामला दर्ज होते ही भारत सरकार तुरन्त ही अलर्ट मोड में आ गयी. सरकार ने शुरुआती स्तर पर देशभर में जल्द से जल्द कोविड-19 वायरस की पहचान करने वाली लैब और दूसरे जरूरी उपकरणों का प्रबंध समय रहते कर लिया था. शुरुआत में पूरे देश में जहां सिर्फ 15 प्रयोगशालाएं थीं. वे महज कुछ ही दिनों में 150 से अधिक हो गईं. बाद में इन प्रयोगशालाओं को जिलेवार स्तर पर भी खोला गया.
सरकार ने महामारी एक्ट के तहत ज्यादातर शक्तियाँ अपने हाथों में लेते हुए 25 अप्रैल 2020 को देशव्यापी संपूर्ण लाॅकडाउन लगा दिया. देश में समस्त गतिविधियां रोक दी गईं, लोगों के आने जाने पर पाबंदी लगा दी गयी. पहले यह लाॅकडाउन केवल 14 दिनों के लिए लगाया गया था. जो बढ़ाते-बढ़ाते 3 महीने से भी अधिक समय तक लगा रहा.
लाॅकडाउन के एक महीने बाद ही देश में मजदूरों का बड़ी संख्या में प्रवास शुरू हो गया. ट्रेन और दूसरे यातायात बंद होने के कारण लोगों ने कई सौ किलोमीटर तक का सफर पैदल ही पूरा किया. हालांकि प्रवास के कुछ दिनों बाद जब सरकार पर उँगलियाँ उठी तो सरकार ने लाॅकडाउन में कुछ राहत भी दी. जिसके बाद मजदूरों और प्रवासियों के लिए ट्रेन और दूसरे यातायात शुरू किए. साथ ही साथ देश में जरूरी दूसरी सेवाएं भी बहाल हुईं. जिससे तीन महीने से पटरी से उतरी लोगों की जिंदगी थोड़ी बहुत आसान हुई.
हालांकि जुलाई में खुलना शुरू हुआ लाॅकडाउन पूरी तरह लगभग अक्टूबर-नवंबर तक खुला. लोगों की जिंदगी कुछ हद तक पटरी पर लौट ही रही थी.
तभी जनवरी-फरवरी से कोरोना की दूसरी खौफनाक लहर के आने के संकेत मिलने लगे थे. सरकारी मशीनरी ने लोगों से जुड़ी स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरूस्त करने में कोई दिलचस्पी नहीं ली. पहली लहर के खतरे को टालने का जश्न अब तक जारी था. मार्च आते-आते कोरोना के नवीनतम वेरिएंट डेल्टा और डेल्टा प्लस अपनी तबाही शुरू कर चुके थे. इस दौरान सरकार ने पूर्ण लाॅकडाउन ना लगाकर आंशिक लाॅकडाउन लगाया. मार्च से मई-जून तक चली इस लहर में हर ओर सिर्फ तबाही और मौत का खौफनाक मंजर था. लाशों को शव दाह गृहों में जलाने की जगह नहीं थी. कोविड की दूसरी लहर के लहर के दौरान सरकारी आंकड़ों के अनुसार लगभग 5 लाख मौतें हुईं, लेकिन कई मीडिया स्रोतों के अनुसार असल आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा लगभग 30-40 लाख है. इस दौरान देश में संक्रमण दर 40-50 फीसद तक पहुंच गयी थी. देश के सभी छोटे बड़े अस्पतालों में ऑक्सीजन खत्म हो गयी थी. लोग अपनों को बचाने के लिए खुद से ऑक्सीजन सिलेंडर खरीदर अस्पतालों में पहुंचाते थे. सरकार ने अपनी तरफ से कुछ मदद करने की कोशिश की लेकिन वह लोगों की जान बचाने के लिए नाकाफी थी. दूसरी लहर में हुई मौतों की कहानी गंगा और दूसरी नदियों में बहती लोगों की लाशें स्पष्ट बताती हैं.
दूसरी लहर की भयावहता के बाद तीसरी लहर का अनुमान लगते ही सरकार हरकत में आ गयी. पहले से ही जारी बचाव की तैयारियों को और तेज कर दिया गया. देश में कोविड टीकाकरण को भी तेज कर दिया गया. जनवरी- फरवरी में आयी कोरोना तीसरी लहर का देश में ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा. सरकार की तैयारियों आम लोगों की सावधानियों के कारण यह लहर आसानी से गुजर गयी.
जापान में शिंजो आबे से पहले भी कई राजनेताओं की हो चुकी है हत्या
जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की कल दोपहर गोली मारकर हत्या कर दी गई. हत्या के समय आबे जापान के नारा शहर में एक चुनावी जनसभा को संबोधित कर रहे थे. हत्या करने वाले शख्स ने उन्हें पीछे से दो गोलियाँ मारीं. जिसके बाद आबे को स्थानीय अस्पताल ले जाया गया. जहाँ इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई. जापान जैसे सुरक्षित और शांत देश में इस तरह दिनदहाड़े एक पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या देश की सुरक्षा पर सवालिया निशान खड़ा करता है.
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