माननीय का आगमन

किसी छोटे शहर का स्वरूप रातों रात किस तरह बदल जाता है। जब वहां कोई बड़े और सत्ताधारी नेता का आगमन होता है। उसी बदलाव को मैंने एक व्यंग्य में बताने की कोशिश की है। लेख थोड़ा बड़ा है इसलिए ठहर के पढ़ना पड़ेगा। लेकिन आपको यकीन दिलाता हूँ कि आपका वह समय व्यर्थ नहीं जाएगा।

धन्यवाद

नमस्कार, मैं उरई शहर बोल रहा हूँ

मैं 25 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैला और लगभग 4 लाख लोगों को अपने आँचल में पनाह देता हूँ। लेकिन मेरे लिये आज की शाम बीती दूसरी शामों से बिल्कुल अलग है। आज चहुँओर जैसे मानो विकास की गंगा खुद के बहने का कर रही हो, जिसे कोई रातरूपी बाँध बनाकर रोकने का प्रयास कर रहा था। पिछले एक हफ्ते से जारी ताबङतोङ विकास कार्यों को बस फाईनल टच देना बाकी था। मैं खुद में भी अपने इस हैरतअंगेज बदलाव को लेकर चिंतित था। जो कि होना स्वाभाविक भी है। क्योंकि इससे पहले उसने लोगों को विकास नहीं बल्कि धूल, जलभराव, गड्डों के बीच-बीच में रोड और चिल्ल-पों करते वाहनों से भरी सडकें ही दी थीं। ऐसा लग रहा है कि अगर मुझे सचमुच आँखें होतीं तो आज वे भी मारे खुशी के भर आतीं। अब मैं अपनी उदासी को पीछे छोङकर शान्ती की मुद्रा में आ चुका था और कल सुबह मैं अपने विकास को देखकर मुस्कुराने को बस तैयार हूँ। क्योंकि कल मेरे आँचल में एक माननीय आने वाले हैं।

गोविन्दम ढावे से लेकर झाँसी रोड और जालौन वाईपास से लेकर राठ रोड ओवरब्रिज तक छोटे बङे पोस्टर लगाने का काम जोरों से चल रहा था। जिसे जहाँ जगह मिलती वह वहीं पोस्टर लटका देता। पार्टी की युवा इकाई के सभी बङे नेता जिनमें बूथ अध्यक्ष, नगर मंत्री, कोषाध्यक्ष, सहमंत्री, मीडिया प्रभारी और महामंत्री शामिल थे। जो आये दिन मीठी बोली, सभ्य आचरण और विनम्र स्वभाव से पार्टी का काडर बढाते शहर के चौराहों, सडकों और गलियों में आये दिन मिल जाते हैं। इतनी व्यस्तता के बीच बस थोङा सा समय सजने सँवरे को मिला था, बस उसी में पोस्टर के लिये फोटू खिंचवा ली। लेकिन मेहनत का रंग ऐसा कि फोटू बिल्कुल विक्की कौशल जैसी आयी, मानो बस अभी कोई कैटरीना जैसी सुन्दर और कुँवारी कन्या शादी का रिश्ता लेकर घर आ जायेगी। पोस्टर में बची थोङी सी जगह में टिल्लू, मिल्लू, चिन्टू, मिन्टू, बाकी सभी की फोटो लगा दीं। जो पोस्टर में भईया जी को धन्यवाद देते और खीसें निपोरते हुये मानो अपनी-अपनी कैट का इंतजार कर रहे हों।

मेरे ऊपर पोस्टर लगाने वालों में दूसरी विरादरी छुटभैया और टिकिटार्थी नेताओं की थी। जो प्रधानी से लेकर विधायकी तक के टिकट लेकर हमेशा जनता की सेवा करने को लालयित रहते हैं। ये इतनी खूबियों से युक्त होते हैं कि बिना इनके बताये ये खूबियां पब्लिक डोमेन में नहीं आ पाती हैं। इसलिये पोस्टर में ऩा चाहते हुये भी इन्हें ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ और लोकप्रिय जैसे शब्दों का इस्तेमाल मजबूरी में करना पङता है। इनमें जिन नेताओं को सङकों-चौराहों पर पोस्टर के लिये जगह नहीं मिली, उन्होंने अपने घर की छत पर ही पोस्टर लगाकर नेता जी के स्वागत की तैयारी की। कुछ नेता ऐसे भी थे जो माननीय के स्वागत की तैयारियों के बीच में पङी शादियों में मिलने वाली मुफ्त भोजन योजना का लाभ भी नहीं उठा सके थे।

तो वहीं दुसरी ओर मेरे वर्षों के आँसुओं को शासन, प्रशासन, ठेकेदार और सफाईकर्मी सभी पोंछने की कोशिश में लगे थे। जिनकी नेता जी के आगमन से पहले किसी ने कोई सुध नहीं ली थी। मेरे विकास और सुन्दरता के लिये आये धन से सभी अपनी-अपनी जेब और तोंद को मोटा करने में लगे थे। नेता जी की रैली से 2-2, 3-3 दूर किमी तक विकास कार्य जोर पकङ चुका था। जहाँ नेता जी को तो छोङिये कोई छुटभैया नेता तक झकने नहीं जाता। अमन के घर के बगल में खुला नाला पटने लगा था, सुमित के घर के सामने वाला टुटा खम्भा जुङने लगा था, हिमांशु के घर को जाने वाली पुलिया बनने लगी थी, बजरिया में राघवेन्द्र के सामने वाला खुदा रोड पक्का होने लगा था और ओमादित्य के घर के बगल में पड़ा कचरा हटाया जाने लगा था । इसके अलावा भी मेरे दूरन्त क्षेत्रों मोदी ग्राउंड, अजनारी रोड, मेडिकल कॉलेज और वन विभाग तक विकास को जबरदस्ती पहुँचाया जा रहा था। मैंने इन जगहों को अपने आँचल में समेटा है, लेकिन उसमें लगे इन छोटे-छोटे दागों को साफ करने की जहमत माननीय जी के आगमन से पहले किसी ने नहीं उठाई थी। मेरे शरीर के कोने-कोने पर झाङू लगाई जा रही है और सङकों के किनारे सफेद कलई डालकर मुझे दुल्हन की तरह सजाने का भरसक प्रयास किया जा रहा है। लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि काम के समय भी सभी के मुँह में अमृतरूपी भैरव, महाकाल, बादशाह और राजश्री जैसे ब्रांडेड गुटखे दबे थे। जिनकी पीक मेरी सङक पर थूककर उसे लाल करने का प्रयास भी किया जा रहा था।

नेता जी का काफिला गाँन्धी इंटर कॉलेज से मेरे सीने भगत सिंह चौराहा (पुराना नाम- मच्छर चौराहा) से होते हुये अंग्रेजों के जमाने में बने राजकीय इंटर कॉलेज तक जाना था। इस 2 किमी लम्बे रास्ते को किसी बङी सङक परियोजना की तरह विकसित किया जा रहा है। नेता जी को दोपहर में आना था लेकिन मारे हङबङी के प्रशासन ने लाइटें सही करवाने में कोई कोर कसर नहीं छोङी। गड्डों में बनी सङक को मानो अटल सङक परियोजना की तर्ज पर बनाया जा रहा था। सङक बस कुछ ही घंटों नें एकदम भक्क साफ दिखने को तैयार थीं, प्रशासन की लगन ऐसी कि अगर उसे थोङा समय और मिल जाता तो बुन्देलखण्ड एक्सप्रेस-वे का कुछ हिस्सा ही यहीं उठाकर रख देते। सङक के आसपास बने अवैध अतिक्रमण को युध्दक स्तर पर हटाया जा रहा था । जिसकी जद में मोहन चाय की दुकान भी आ गयी जो शाम के वक्त शहर के नौजवानों का संगम है। जादू इतना बेहतरीन के बस देखते-देखते कुछ ही घंटों में सङक की चौङाई 20 फिट बढकर 30 फिट हो गई। निर्माण कार्य में बाधा ना पङे इसलिये ऑटो-रिक्शा को टाउनहॉल और दूसरी ओर टेशन (पूरा नाम- रेलवे स्टेशन) के आगे नहीं बढने दिया। जो भी कोई धूम की स्टाईल में ऋतिक रोशन बनता ट्रैफिक पुलिस विलेन बनकर उसके हायाबुसा रूपी रिक्शे में पेंच घोंपकर उसकी फुस्स्स्स्स्सस से हवा निकाल देती और उसमें बजते पवन सिंह के गानों को लठ्ठ मार के झट से बन्द कर देती। सुरक्षा कारणों से स्टेशन रोड पर पङने वाली कोचिंग भी आज बन्द थीं, जहाँ कुछ छात्र पढने तो कुछ मजनूं टाइप के छात्र अपनी लैला से नैन मटक्का करने आते हैं। दुसरे टाइप के छात्रों के आज के लिये आज का दिन पूरी तरह से बेकार हो चुका था।

भगत सिंह चौराहे को पोस्टरों से पाटने की योजना बनाई गयी क्योंकि चौराहे का निर्माण कार्य प्रगति पर था। काम इतना ज्यादा कि उसे माननीय जी के आगमन से पहले पूरा करना असम्भव था। इसलिये दूसरा रास्ता यही निकाला गया कि नेता जी को पता ही ना चलने दिया जाये कि यहाँ कभी कोई चौराहा भी था। कौन-सा नेता जी को यहाँ रोज-रोज भ्रमण करने आना है? माननीय जी के काफिले के बीच में पङने वाले करमेर रोड की स्थिति बाकि दूसरी सङकों से बेहतर थी। बस यहाँ रखे डिवाइडरर्स के लाल रंग को छुटाना था, जिसकी वजह होली नहीं बल्कि कुछ और ही थी। ये हास्स्स्स्स मूमेन्ट अधिकारियों से कहीं ज्यादा सुकून सफाईकर्मियों और मजदूरों को दे रहा था, क्योंकि पिछले सात दिनों से काम के बोझ के तले दबकर उनका कचूमर निकल चुका था। वे बस जल्दी से काम खत्म करके एक बोतल जिंदगी की लेना चाह रहे थे।

जनसभा के मुख्य स्थल जीआईसी ग्राउंड में पिछले 10 दिन से कई मजदूर और कारीगर दिन-रात एक करके मंच को तैयार करने लगे थे। मैदान में दिनभर दौङ लगाकर रात को यहीं विश्राम करने वाले गधों ने कुछ दिनों के लिये अपना आशियाना बदल लिया था। तो वहीं दूसरी ओर वे क्रिकेटर भी बेरोजगार हो गये जो कुछ कमाई करने की सोचकर जीआईसी में मैच खेलने आते थे। आज यह मैदान पोस्टरों से इस कदर पटा था कि यह स्कूल कम और न्यूयॉर्क का टाइम्स स्क्वायर ज्यादा लग रहा था। विद्यालय भवन और आसपास का क्षेत्र पूरी तरह नेता जी और छुटभैया नेताओं के बैनर के पीछे छुप गया था। मैदान में जहाँ नजर डालो वहीं नेता जी का स्वागत करते टिकिटार्थी और विक्की कौशल की स्टाइल में स्माइल करते युवा नेता ही नजर आ रहे थे। उनमें से ज्यादातर ने कुर्सियां लगाने और दूसरे छोटे-मोटे कामों के लिये अपने कुछ खास सिपेहसलार जिगर के टुकङों को काम पर लगा रखा था। और खुद मंच पर बैठने की जुगाङ में बङे-बङे नेताओं के पीछे दुम हिलाते घूम रहे थे कि मंच पर बैठकर नगर की जनता का अभिभादन स्वीकार कर सकें।

आज शाम से ही जीआईसी और मेरे दूसरे हिस्सों में एक नई गैंग ऐक्टिव हो गई थी जिसका नाम है पोस्टर चोर गैंग। अधिकारियों और इस गैंग में बस ही समानता थी कि दोनों ही नेता जी के आगमन से ज्यादा उत्साहित उनके जाने को लेकर थे। अधिकारी चैन की साँस लेना चाहते थे, तो वहीं यह गैंग जगह-जगह लगे पोस्टर्स को फाङकर अपने घर ले जाने की में जुगत था। इस गैंग में हर परिवार से लगभग 2 से 3 लोग अपनी सक्रिय भूमिका निभा रहे थे। पोस्टर का इस्तेमाल सही तरीके से करना यही लोग बखूबी जानते हैं। कोई इसे छप्पर पर डालकर बारिश से बचाव चाह रहा था तो कुछ घर या दुकान में बिछाकर उसपर पिछवाङा रखकर आराम करने की सोच रहे थे।

अब रात बहुत हो चुकी है, लेकिन मुझे दुल्हन की तरह सजाने का काम अब भी जोरों से चल रहा है। पुलिस की गाङियां आयं आयं आंय करतीं मेरे शरीर के हर हिस्से पर सुबह से लेकर अबतक दौङ रहीं हैं। घंटाघर और टाउनहॉल पर लगीं बङी-बङी घङियां टन्न्न्न्न टन्न्न्न्न की आवाज करती हुईं 10 बजने का संकेत दे रहीं थीं। अब मुझे और मेरे वासियों को इंतजार कल माननीय जी के आने का है।

...... कुमार अनूप

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