अम्बेडकर का नाम सुनते ही समाज के कई वर्ग अपने अपने नफा नुकसान के हिसाब से उनके बारे में अपनी धारणा तय कर लेते हैं. कोई उन्हें दलितों का मसीहा कहता है. तो कोई वर्ग संविधान की प्रारूप समिती के अध्यक्ष तक सीमित कर देता है. तो वहीं एक अन्य वर्ग उन्हें संविधान में आरक्षण की देन तक के लिए ही जानता है। समाज के इन खास वर्गों ने अम्बेडकर की पहचान को एक दायरे में समेट दिया है। जो उनकी असल पहचान का सिर्फ एक छोटा सा हिस्सा है।
असल में अंबेडकर की पहचान इन धारणाओं से कहीं अधिक है। वे दलितों के मसीहा, प्रारूप समिती के अध्यक्ष और आरक्षण की देन के अतिरिक्त एक महान अर्थशास्त्री, शिक्षाविद्, बैरिस्टर, संविधान विशेषज्ञ, पत्रकार और नारीवादी भी थे। लेकिन दुर्भाग्यवश उनकी इस पहचान से देश का एक बड़ा वर्ग अनजान है।
सामान्यतः देखा जाता है कि किसी गरीब और कम पढ़े लिखे दलित के सामने बाबा साहेब के व्यक्तित्व के बारे में चर्चा करने पर वह गौरान्वित महसूस करता है। क्योंकि वह ये बात भलीभाँति जानता है कि उसके सामाजिक उत्थान में बाबा साहेब का बहुत बड़ा योगदान है। साथ ही अगर आज वह अपने हक और बराबरी की बात कर रहा है तो वह देन भी बाबा साहेब की ही है। लेकिन इसके आगे वह उनके व्यक्तित्व से अंजान ही होता है, कि बाबा साहेब ने और कौन से दूसरे हक और अधिकारों की बात की है। ना ही वह देश के लिए किए गये उनके आर्थिक, राजनैतिक और कानूनी सुधारों को जानता है। जिसका प्रमुख कारण है कि लोगों को बचपन में ही बता दिया जाता है कि दलितों के मसीहा- डा. भीमराव अम्बेडकर, इसके आगे ना उसे सिखाया जाता है ना ही वह सीखने की कोशिश करता है.
तो वहीं सवर्ण वर्ग बाबा साहेब की प्रतिभा से इतना ही परिचित है कि उन्होंने संविधान में आरक्षण लागू करवाया है। जो उनके वर्ग के साथ डा. अम्बेडकर की भेदभाव की मानसिकता को दिखाता है। उन्हें नहीं पता होता है कि आरक्षण के अलावा बाबा साहेब की आरबीआई और योजना आयोग के निर्माण में कितनी बड़ी भूमिका थी ? वे भूल जाते हैं कि उन्हें प्राप्त मौलिक अधिकारों को दिलाने में भी बाबा साहेब को कड़ा संघर्ष करना पड़ था। वे नहीं जानते कि दुनिया का सबसे खूबसूरत संविधान बनाने के लिए अम्बेडकर ने 60 से भी अधिक देशों के संविधान का गहन अध्ययन किया था। साथ ही बाबा साहेब ने सवर्णों के उन दबे, कुचले और गरीब वर्ग के उत्थान के लिए भी कार्य किए हैं. जो सवर्ण होकर भी नारकीय जीवन जीने को मजबूर थे। दुर्भाग्यवश उस वर्ग ने भी बाबा साहेब की शख्शियत से किनारा कर लिया है।
तो वहीं दुनिया की आधी आबादी यानि महिला वर्ग के लिए बाबा साहेब द्वारा किए गये काम अपने आप में एक मिसाल है। महिला उत्थान के प्रति उनकी सोच को उनके कहे एक वाक्य से समझा जा सकता है कि ‘ मैं किसी समाज की उन्नती का मूल्यांकन इस इस आधार पर करूँगा कि उसमें महिलाओं की क्या स्थिति है ?’ मनुवादी सोच की शिकार महिलाओं को सामाजिक बराबरी और अधिकार दिलाना बाबा साहेब के सभी महान कार्यों से अधिक महत्वपूर्ण है। उन्हीं की वजह से संविधान के निर्माण साथ ही पुरुषों के समान ही वोटिंग का अधिकार प्राप्त हो गया था।
बाबा साहेब के विचारों को संकीर्ण करने की प्रमुख वजह उनके बारे में पहले से बनी अवधारणाएं और उनको कम पढ़ा जाना है। उनको पढ़कर और समझकर ही हम उनकी वास्तविकता से परिचित हो सकते हैं। जो उनकी 132 वीं जयन्ती पर उनको सच्ची श्रध्दांजली होगी।
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